थारु भाषामे त थ द ध वर्णके प्रयोग

विचार

रामसागर चौधरी

कथ्य थारु भाषाके लेख्य रुपमे विकास करेलगिन स्थानिय, क्षेत्रिय स्तरसे लागि परल छै । जतन्या कथ्य या बोलचालमे सहज हे हलक लागछै वहिने लेख्य रुपमे उतारे लगिन कठिन काम छेकै । थारु भाषा लेख्य रुप बनावे लगिन आपन आपन तरिकासे लेखन सैली तयार करिके आगु बढी रहलैस । पछिम तराइमे दाङसे ल्याके कन्चनपुर तक दङ्गौरा, देउखुरिया, देउसरी, कठरिया, रजहटिया, रानाथारु भाषा बोलचालमे छै ।
लेख्य थारु भाषाके सुरु हेल ४०–४५ बर्षके बाद दङ्गौरा थारु भाषामे त, थ, द, ध वर्ण प्रयोग नय करिके वकर सट्टामे ट, ठ, ड, ढ के प्रयोग चलनमे आनलकैस । दङ्गौरा थारु भाषा अभियन्ताना यीटाके लेखन सैलीमे आनलकैस । संसारके बहुते भाषाके बिकास एके दिनमे नय हेलेस । असल शव्दके ग्रहण करिके आगु बाढलैस ।

अंग्रेजी भाषामे ट, ठ, ड, ढ हे त, थ, द, ध के निखाई त्ब, त्जब, म्ब, म्जब निखछै मतर जखने उच्चारण करछै त फरक देखल जेछै । दङ्गौरा थारु भाषामे त थ द ध के उच्चारण ट ठ ड ढ हवे साकछै मतर निखाइमे तथदध छोडी देलासे थारु भाषामे शव्दके अनर्थ लागछै ।
अंग्रेजीमे स्कूल उच्चारण ’स्चुल’ होना चाही मतर स्कूल उचारण कर्छै । फ्यूचर के उच्चारण ’फुटुरे’ होना चाही मतर फ्युचर उचारण करछै । नेपाली स्थाईके उचारण ’थाई,’ स्पष्ट के उचारण ’पष्ट’, य के उचारन ज, लगायत बहुतो उदाहरण छै । घर, आज शव्दके हिन्दी, नेपाली, मैथली, थारुमे निखाई एके हेछै, मतर कथ्य उचारण मे फरक परछै । यह्या उचाणरणके कारण भाषाके आपन पहिचान बनछै । कथ्य उचारण मे फरक परलासे खास समस्या नय पर्छै । मतर जव निखाइमे फरक परलासे शव्दके अर्थ फरक परछै । जव शव्दके अर्थ फरक परलासे भाषा लगायत बहुते समाजिक समस्या यछै ।

विव्दान मित्रना नाम, ठाम, थर, प्रचलित शव्दके त थ द ध प्रयोग करेके बात बतलकैस मतर ब्यबहारमे ठिक बिपरित देखापरि रहलैस । थारुके ठारु लिखना समग्र थारु जातिके मान मर्दन करना बराबर छै । सगरमाथाके सगरमाठा, धन्यवाद के ढन्यवाड लिखना आपने बनल नियमके तोडना बराबर हेछै । थारु भाषा के पत्रपत्रिका, गोरखापत्रके थारु भाषा पानामे बहुतो शव्दके तोडमडोर करल गेलैस । जकर चलते थारु भाषा बिबादित बनलैस । दङौरा थारु भाषाके बनेबला शव्दकोष मे बहुते लया शब्दके जगह भेटवे करतै मतर अर्थके अनर्थ नय बनोक सजग सतर्क रहिके काम करना चाही ।

थारु भाषामे त थ द ध के सट्टा ट ठ ड ढ के प्रयोग करलासे एक भाषा सम्बृध हवे नय साकछै ।

थारु भाषामे त थ द ध वर्णके प्रयोग पहिनासे चलि यलैस । थारु भाषामे त थ द ध के सट्टा ट ठ ड ढ के प्रयोग करलासे एक भाषा सम्बृध हवे नय साकछै । जनत दोसर मखे अर्थके अनर्थ लागे साकछै । तत्सम, तदभवहे आगन्तुक शव्दके बात यछि जनत उना शब्दके अर्थ एके हेछै । अर्थमे फरक नय हेछै । जहिने बोलछै वहिने निखना चाही मतर अर्थके अनर्थ नय होना चाही । अनर्थ लागेवला लया शव्द बन्याके भाषामे समस्या आनिके कखरु हितमे नय छै ।

यतेकरा त थ द ध के सट्टा ट ठ ड ढ प्रयोग करलासे अर्थके अनर्थ लागछै । तकरे कुछ उदाहरण देवेके प्रयास करनुस । थारु भाषी लेखक, भाषा शास्त्रि, अभितनताना थारु बुझछै, जानछै सेहास शब्दके अर्थ नय निखनुस । आशा करछिन थारु भाषामे त थ द ध के प्रयोग चलन नय हटना चाही ।

तकर – टकर, तरवा – टरवा, तर – टर, तरतर – टरटर, तप – टप, तपतप – टपटप, तारी – टारी, ताल – टाल, ताव – टाव, तिन – टिन, तित – टिट, तिस – टिस, तिनखुट – टिनखुट,
तुक – टुक, तुकतुक – टुकटुक, तुस्सा – टुस्सा, तुल – टुल, तुत – टुट, तेतरा – टेटरा, गतर – गटर,
तोर – टोर, तोक – टोक, हात – हाट, बात – बाट, घात – घाट, गोत – गोट, लत – लट,
फतफत – फटफट, पित – पिट, पिता – पिटा, खत – खट, चित – चिट, समत – समट, कोत – कोट, खोता – खोटा, रतना – रटना, उतान – उटान, फतका – फटका, कोतवाल – कोटवाल, सतर – सटर,
थन – ठन, सिथ – सिठ, थान – ठान, थारी – ठारी, थारु – ठारु, थेथरा – ठेठरा, थोक – ठोक,
थुमक – ठुमक, थोर – ठोर, थोथा – ठोठा, थेथुवा – ठेठुवा, थेकरा – ठेकरा, थोथ – ठोठ,
दांत – डांट, दवा – डवा, दाम – डाम, दावी – डावी, दिक – डिक, दिन – डिन, दोल – डोल,
दोहा – डोहा, दोम – डोम, खोद – खोड, , दाङ – डाङ, दाव – डाव, दाल – डाल,
धार – ढार, धन – ढन, धुम – ढुम, धुस – ढुस, बुधिसुधी – बुढिसुढी, धोना – ढोना, धरल – ढरल, धरधर – ढरढर, धोर – ढोर, धिया – ढिया, धुल – ढुल, धोल – ढोल, धोकल – ढोकल, धोधना – ढोढना, धिमकी – ढिमकी,

त थ द ध के सट्टा ट ठ ड ढ प्रयोग करलासे अर्थके अनर्थ लागछै ।

यीना त कुछ नमुना उदाहरण देनुस। यकरसे बेसीभि हवे साकछै तकर जिम्मा पाठक बर्गके लगिन छोडी देनुस । अन्तमे धन्यवाद (प्रचलित, स्थापित, सहज बुझाई शव्द) – के बोलाइ लवज फरक हवे साकछे मतर निखाइमे धन्यवाद निखनासे एकरुपता, एकअर्थ, सहज बुझाई हेछै ।
त थ द ध बहिष्कार करिके एक समबृध्द थारु सम्पर्क भाषा बने साकछै ? थारु भाषा बिकासके अभियन्ताना एक थारु भाषा बनावेके पक्षमे नय छै ?

(इटहरी–१२, खनार, सुनसरी)

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