हर साल लेखा ई साल भी समयके चक्र घुमत घुमत हम्मनके घर अंगनामे फिर दसिया, दशहराके रमझम आगइल बा । बि.सं. २०७५ साल २४ गते शुक्रबार दिन कुवार शुक्ल प्रतिपदा रहे औ इहे दिनसे शारदीय नवरात्र शुरु होइ गइल बा । नवरात्रके नव दिन अपनेमे शक्तिपूजाक रहस्य समेटले बा । ब्रत, उपवास औ साधनक माध्यमसे यी रहस्यके अनाव्रत कइ सकलन । यी नौ दिनमे माता भगवतीक नवदुर्गा रुपके साधना करलन । नवदुर्गक पूजा शक्ति–साधना हो । साधना–शक्तिक् खर्तिन जरुरी बा शक्ति–संचय । एकर बिना न ते शक्ति पूजा बन सकि, न ते जीवनमे सफलता मिल सकी । जहा शक्तिक संचय होइ वहा शान्तिक वरदान बरसत ।
नवरात्रके नौ दिनमे आदिशक्ति माता गायत्री अपन सन्तानेन शक्तिक अनुदान देहेक बोलालन् । महाकाली, महालक्ष्मी औ महासरस्वती ओकहारे अंशके शक्ति होलन । गायत्री मन्त्रके तीन चरणमे एकहारे शक्तिक बास रहत । ॐके ध्यानके बीज कहलन । यी बीजके बलसे साधकके मन औ भाव पवित्रतासे भर उठत । ‘भूर्भुवः स्वः’ तीन शरीर हो —स्थूल, सूक्ष्म औ कारण । गायत्री मन्त्रके पहिला चरण ‘तत्सवितुर्वरेण्यं’ महाकाली चेतनक प्रतीक हो । सवितक प्रखरतासे सबसे पहिले तमस्, अन्धकारके निकारत अथवा ओराजात । यी तमस् औ अन्धकारके बिन निकरले आगेक यात्रा सम्भव नाइ बा ।
गायत्री मन्त्रके दुसर चरण – ‘भर्गोदेवस्य धीमहि’ महालक्ष्मी चेतनक प्रतिक होलन । यी सुख, समृद्घि एवम वैभव प्रदान करलन । ‘धियो यो नः प्रचोदयात्’ महासरस्वतीक प्रर्याय हो । ज्ञानके अवतरण सुख –शान्तिक बादे सम्भव बा । यी अंशभुतक शक्तिक बाद शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्री, महागौरी व सिद्घिदात्रीक नौ रुपमे उहे इ नौ दिनके अधिष्ठात्री शक्ति होलन । श्रीदुर्गा सप्तशतीम यिनकर कीर्ति गाइल बा । शुम्भ– निशुम्भके सम्हार करोइया महिषमर्दिनी माता, वेदमाता गायत्रीये होलन । उहे वरदायिनी माता अपन शक्तिक विशिष्ट अंश देहेक खर्तिन यी नौ दिनमे सतपात्र औ साधकनके खीचलन ।
नवरात्रके नौ दिनमे साधकके भित्तर सुप्त औ गुप्त सम्भावनक उजागर करेक आह्वान करलन । यी दिन सुखद सम्भावनक साकार करेवाला संकल्पित साधकके खर्तिन पुकार हो । यी नौ दिनमे समर्थ साधक उ बीया बोय सकही जेकर लहलहात फसिल साधकके आंतरिक औ बाह्य जीवन पूरा बर्ष बनाए राखन । यी नौ दिन निकारेक अर्थ –अपन भित्तर अंतर्निहित पूरा सम्भावनक नकार देहना ।
यी नौ दिनके नौ रात फिर अपनेम सधनाके गहन रहस्येम समेटलन । यिनकर हरघडी प्रेरणा भरल पुकार रहत । जे साधक रहलन, उ एके सुने बिना नाइ रहे सेकालन । रणभुमिमे रणभेरी बजत रहे, औ शूरबीर मुह नुकुवाके कौनो कोनवम बइठल रहे, यी कब्बो संभव नाइ बा । नवरात्रके नौ दिन साधकनके खर्तिन ऐसहि चुनौती भरल साधनक रणभेरी बजत बा । जे साधक होलन सच्चा साधक – सोङ करोइया, प्रदर्शन करोइया न रहन ते यी सुनके साधनक महापुरुष बने बिना नाइ रह पइही ।
साधक समयक महत्व सुपरिचित रहलन, जबकि नवरात्रके हर समय बहूत महत्वपूर्ण समय होत । यी दिब्य औ खैवीय क्षणके भला साधक कइसे अनसुन करे सकही, अन्जान रही सकही । यी विशिष्ट मुहुर्तके खर्तिन ते साधक चिर परिचित रहलन औ जब यी क्षण उपस्थित होत ते उ अपनेक तपस्यक भट्ठीम गलाके निखार देहत । साधकके खर्तिन यी नौ दिन तपस्यक बहुमुल्य घडी हो, जेहमे उ आदिशक्तिक लीलक रहस्यके एक सन्तानके हस समझलन । यी दिन उ माताक कृपासे वंचित नाइ होलन ।
नवरात्रके यी रहस्यसे जउन अन्जान रहलन, उ शक्ति–समुन्द्रमे बास करते भी दिन–दुःखी औ दयनिय बनल रहलन । ‘सागर बिच मीन प्यासी’ यिहे ओनकर जीवन–कहानी रहत । जे यी रहस्यके जानेक साधना करत उहे माता भगवती आदीशक्तिक संतान होएक गौरव पालन, ओनके कृपासे साराओर होइजात । ओनके रोवा–रोवम शक्तिक समुन्द्र लहरा जात । ओनके नाडिक उर्जा उफ्नात । शक्ति–साधकके खर्तिन कब्बो कुच्छु असम्भव नाइ रहत ।
शक्ति पूजक इच्छुक साधकनके एक चीज ध्यान रक्खेक चाहीं , उ हो शक्क्ति– संचय । संचय विना शक्ति ओराजात औ अभिष्ट पुरा नाइ होयपात । शक्ति साधकके नवरात्रके इहे समयसे माता महाशक्ति पुजक खर्तिन पंचोपचारके तयारी करेक परत । यी पंचोपचार के क्रममे आत– १. शारीरिक शक्ति,२.मानसिक शक्ति,३.भावनात्मक शक्ति,४.आर्थिक शक्ति औ ५.आध्यात्मिक शक्ति ।यी पाँचो शक्तिक संचय करेक जरुरी बा । यी पाँच शक्ति अभाव से मनइनके पीडा सहेक खर्ति विवस करत । यी पाँच शक्तिक बरबादी मनइनके पतन औ गहींर अन्धकारमे धकेलदेत जब की यी पाँच शक्तिक संचयसे ब्यक्ति प्रशन्न होत ।
नवरात्रके नवदिन शक्ति पुजक इहे रहस्यके संझेक ओ आत्मसात करेक दिन हो । यी नव दिनमे हमरे आपन संचित शक्तिसे मा भगवतीक उपासना करेक चाँही । यी नव दिनमे यहमे अनगिनत रहस्य समाइल बा बकिन इ रहस्य गायत्रीक महामन्त्रमे समाहित बा । गायत्री मन्त्रके आगे–पाछे ॐ लगाके जप कइलेसे स्थूल,सूक्ष्म औ कारण यी तीन शरीरके कुल शक्तिक जागरण होत । औ एकर फलस्वरुप ॐ कार के परम पदके प्राप्तीहोत, बकिन अइसन ओन्हनके जीवनमे होत जे आपन जीवनके हर घडीमे, शक्तिक कण कणके संचय करत औ संहरी शतकर्मके रुपमे एकर सदब्यय कइके विश्वब्यापीनी माता जगदम्बा माता गायत्रीक अर्चना–आराधना करलन । समय अनुसार हर एक चीजमे परिवर्तन अएना क्रममे स्वाभाविक रुपमे आजकल दशहरा मनएनामे भी बदलाव आइल बा । आपन संस्कृति सभ्यताकेहे न भुलाके आपन कला संस्कृतिके जर्गेना करते बढिया संस्कारकेहे आपन ब्यवहारमे उतरना आउर नाई बढिया संस्कार संस्कृतिकेहे छोड देहना हम्मन सबके बुद्धिमानी हो । इहे सब सकारात्मक सोचके साथ आइलजाय सब जने धूमधामसे दशहरा मनाई आउर सबके घर घरमे सुख, शान्ति, समृद्धि एवं उत्तरोत्तर प्रगतिके भी मंगलमय कामना रहल बा ।