थारु कविता
पोर, परार, चिरार
मोर देश बन्ना आश !
मने
बटिया हेरत् हेरत्
पुगे लग्नु आज पचास
तौन फे
नै बनल मोर देश ।।
जब गोमन्ह्या करुँ
पञ्चायतके छाँही !
जब पैला सर्नु
धुँवा–बारुदसे देश रुइल
निर्दलसे बहुदल
व्यवस्था परिवर्तन हुइल
तौन फे
नै बनल मोर देश ।।
मनै मरके
व्यवस्था परिवर्तन कर्ली
पुरानसे लावा लन्ली
आब तो
हुई विकास कली !
सबजे ओहे सोँच्ली
तौन फे
नै बनल मोर देश ।।
राणा, पञ्चायत, राजतन्त्र
प्रजातन्त्र, लोकतन्त्र–गणतन्त्र
सक्कु शासन व्यवस्था हेर्ली
देश बन्ना आसमे झण्डा बोक्ली
खाली पईला,
ओहो तातुल सडक !
तौन फे
नै बनल मोर देश ।।
देश बनैना सपना
सबजे देखैलैं,
आज, काल्ह, परौं, लरौं
कहती कहती भुलैलैं !
द्वन्द्व, लराई झगरा करैलैं
देश बन्ना आशमे
तमाम जे बन्दुक पडकैलैं
तौन फे
नै बनल मोर देश ।।
राणा, शाह, चन्द, थापा
गिरि, रेग्मी, देउवा–कोइराला
भट्टराई–खनाल–अधिकारी
दाहाल–नेपाल–ओली !
सक्कु जनहन हेर्ली
तौन फे
नै बनल मोर देश ।।
धनगढी ५, कैलाली
रचनाः २०७६ वैशाख २७ गते