थारु मानक भाषा बहस भाग ५

विचार

भुलाई चौधरी

की रहै ?
थारु भाषामे बड्का छुट रहै । भाषाके नाममे जकरा ज्याह है ऊ वह्या करै । ककरो कोनो किसिमके प्रतिबन्ध नै रहै । जकरा ज्याह मन हैछेलै ऊ वह्या बाजै या लिखै । जै कारण क्षेत्रे अनुसारके अनेक किसिमके भाषा भ्यागेल रहै या अखुन्वो छै । मगर यतेक विविधताके बादो सबके विश्वास रहै या छै जे हमजे बाजै चियै या लिखै चियै । ऊ चियै थारु भाषा । यहै विश्वासके साथ सब क्षेत्रके थारु भाषीय प्रेमी सब आपन भाषाके विकास या संरक्षणमे लागल रहै या लागल छै । कोई आपन भाषाके भाषिकाके रुपमे स्वीकार करैले नै मान्नने छै । सब क्षेत्रके आपन छुटे गीत (गोदहन, संस्कार, पहिरन ओरहन, पावैन तिहार, बोलाई लिखाई या पहचान छै ।

हम थारु जे शान्ति प्रिय जाईत चियै ? यी बात सब जगहके थारुमे लागु हैछै । सब जगहके थारुमे एके व्यवहार छै ।

मगर यतेक विविधताके बादो भी जे जतेका थारु हेवे, थारु–थारुके बीचमे सामाजिक बन्धन (सोसल टाइ) बहौत बौकार छै । एक क्षेत्रके थारु दोसर क्षेत्रके थारुके खुशी देख्के खुशी भेनाई । दुःखी देख्के के दुःखी भेनाई । यै समाजके बडका विशेषता चियै । थारु कोई कतौका कथिले ने हेवे मगर वकरा देख्के या वोकरसे मिल्के हर एक थारुमे खुशी झल्कनाई थारु के यी बहौत पैध गुण चियै । थारुमे अपनत्वके भावना बेसी हैछै । कोनो थारु कतौका कथिले ने हेवे, ऊ चिन्हार हेवे या नै हेवे, हमरा लागैये तैयो यदि ऊ पुरबसे पछिम घुमै त वकरा सब जगह थरुहट मे मान मर्यादा भेटवेटा करतै । मगर वकरा विश्वास होना चाही जे ई थारु चियै । कथिले त अखनी दोसर जाईत के छटुपनी के कारण थारु समुदायमे सेहो कुछ माहौल बिगैर गेल्छै जकर असर कहियो कहियो थारु सबके सहो भोगे परैछै । मगर जे कुछ हेवे मानकके नाममे आपन थारु समाजमे जे बौकार सामाजिक बन्धन छै हम वै बन्धनके गमावैले नै चाहै चियै । तै दुवारे हमर सोंच छै जे आपन मानक भाषा येहेन बने जे सर्व स्वीकार हेवे । सबके माननीय हेवे, सब ले बोधगम्य हेवे । हम सबले असान तथा स्तरीय सम्पर्क भाषा हेवे या ई ताबे हेतै जब वै मे सब के भावना समेटल जेतै ।

सब के भावना समावेश हैले सबके सहभागितामे खुला बहस भेनाई जरुरी छै । नै कि चोर्याके कोनो कोनमे बने । अखनी जे थोरे दिनसे मानक भाषाके बारेमे खुल्ला बहस भ्यारहल छै । यै बहससे कतेक के बिमती सेहो हेतै । कथिले त आपन थारु के बादी प्रतिवादी के रुपमे विवाद करैले मन नै लागै छै । हम थारु जे शान्ति प्रिय जाईत चियै ? यी बात सब जगहके थारुमे लागु हैछै । सब जगहके थारुमे एके व्यवहार छै । मगर हमर अनुरोध छै जे यै किसिमके बहसके बुरा नै मानल ज्या । या ने कोई बुरा, प्रतिस्पर्धा, कलुषित भावनासे तथा झैझगडा के मनस्थितिसे बहसमे भाग लेबे । केवक हम सबके साझा उद्देश्य हैके चाही जे समस्या समाधन ले सही सल्लाह आबे । आब हमर बात लागु नै हैवला भेलै । हमर विचारके विषयमे कोई टिप्पणी केल्कै त हम बुरा मानीसे बात नै हैके चाही । टिप्पणी करैके सबके अधिकार छै मगर टिप्पणी सभ्य या शुसील भाषामे हैके चाही । हमे समस्यासे लडैके छै नै कि कोनो व्यक्ति विशेषसे । कोनो व्यक्ति विशेषसे प्रतिशोधके भावनासे बहस करनाई यी त बहौत घटिया व्यवहार भेलै । हमरा आशा आईछ जे हमर विद्वान सहभागी महानुभाब सब यै बातमे विशेष ध्यान देतै या खुल्ला मनसे बहसमे भाग लेतै । कोई भी ब्रह्म् सत्य बाजतै । वोकरसे गल्तिये नै हेतै से हमरा विश्वास नै आईछ । गल्ती सबसे भ्यासकै छै । हम बेसी खुशी हेबै जब हमर समूहमे कोई येहेन विद्मवान महानुभाव हेवे जकरसे गल्ती नै हेवे ।

की भेलै बहससे उपलब्धि
आई हम अपने सबके समक्ष राखैले ज्यारहल चियै जे अखनी तलिकके बहसके उपलब्धि की ? बहौतो साथी सबके बुझाई भ्यासकै छै कि यी बहस बुढिया फुईस् या उपलब्धि रहित छै या चियै । यी बहस आपसमे केवल झैझगडा के बढावा देनाई चियै । मगर हमर बुझाई छै जे यी बहस बहौत उपलब्धि मुलक चियै या छै । जब सबके बाजैके, आपन बुझाई व्यक्त करैके अबसर नै भेटतै त साझा बुझाई केनंके हेतै ? कोन आदमीके यै विषयमे दक्षता छै से केनंके बुझैमे येतै या बहौत समस्या यहै बहसके क्रममे हल भ्याजेतै और यै मे निचोर भेल्हा बातके केवल निर्णय लिखैके बात रहतै । वैले यै कोरोना कहरमे कोनो बड्का सभा गोष्ठियो ने करे परतै या समस्या सेहो समाधन भ्याजेतै या फेन सबके निर्णयो थाह भ्याजेतै । कोईयो यी अभियोगो नै लग्या सकतै जे यी सब ककरो मालुम नै क्याके चोरया के मानक बनैल्कै । यी अतेक दिनके बहससे के की बूझलियै से त हमरा नै पत्ता, मगर हम की बुझलियै से आपन बुझाई या आगु और की बहस हेतै से सार्वजनिक करैले चाहै चियै । यदि यै मे ककरो बुझाई फरक हेतै त बेधरकसे बात राखैके कोशिश करबै ताकि फेनसे वै बारेमे बहस क्याल जेतै ।

आगन्तुक शब्द तथा देवनागरी वर्णके प्रयोग
थारु भाषामे दोसर भाषासे आवश्यकतानुसार येल आगन्तुक शब्द चाहे ऊ तत्सम वा तद्भव (आधुनिक शब्द) या बिदेशी शब्द, परिभाषित शब्द, नाम, थर, पता सबके थारु भाषामे सेहो बिना परिवर्तन के ज्यो के त्यो लिखल जेतै । वोकर हिज्जैमे कोनो किसिमके परिवर्तन नै हेतै । साथे थारु भाषाके मौलिक शब्द थारु भाषाके आपने उच्चारणअनुसार लिखनेसे हेतै मगर कुछ शब्द जे थारु भाषाके मौलिक शब्द हैतो भी आधुनिक शब्दके बहौत करिब के छै वै मे विचार विमर्श या वै बारेमे सहमति अनुसार वोकर चैन हेतै ।

हमर दोसर बुझाई
थारु भाषा भारोपेली समूहके संगेसंगे देवनागरिये लिपिमे लिखैके चलनके कारण थारु वर्णमालामे सेहो देवनागरी लिपिके सब वर्ण (स्वर या व्यञ्जन वर्ण) रहतै । चाहे स्वर वर्ण हेवे वा व्यञ्जन वर्ण कोनो वर्ण छोड्ल नै जेतै । कोनो वर्ण छोड्ने मौलिक भाषाके संगसंगे आगन्तुक बहौतो शब्द लिखैमे समस्या भ्याजेतै । वर्ण छोड्ने गरिब भेनाई सेहो चियै ।

ह्रस्व दीर्घ के प्रयोग
आब तेसर बहसके जहा तैक बात छै त ऊ चियै हर्स्व या दीर्घके प्रयोग सम्बन्ध मे । यी हर्स्व या दीर्घ के प्रयोग कोनो लवका बात नै चियै । यै सम्बन्धमे चर्चा करनाई गावले गीत फेन गाबै समान लागैये । जै मे आगन्तुक शब्दमे ह्रस्व या दीर्घके प्रयोग बारेमे हमरा तोरा कुछ छलफल करैके कोनो जरुरीये नै छै । यी हर्स्व या दीर्घ अकरा आपने नियमअनुसार प्रयोग हेतै । बाँकी रहलै थारु मौलिक भाषाके शब्द साथ ह्रस्व या दीर्घ के प्रयोग । येहो सम्बन्धमे आपन थारु भाषाविद् सबसे कलम नै चलल छै से बात नै । कलम चलल छै । जै मे मध्य पूर्विया थारु नेपाली शब्दकोष और समान लेखनशैली व्याकरण (ड्राफ्ट) अनुसार शुरु या बीचमे सब ह्रस्व लिखैले या अन्तमे सबमे दीर्घ लिखैले सिफारिस क्याल गेल छै । वेनं त यी भाषीयके ह्रस्व या दीर्घवाला यी बडका समस्या यै नियमसे सब दिनले आसानीसे समाधान भ्याजेतै । कोईयो मध्यपूर्वी थारु भाषामे कमो समो ध्यान देनेसे यै भाषामे ह्रस्व या दीर्घ रुपी रोगसे मुक्त भ्याजेतै । वोकरा बेसी झंझट नै उठावे परतै ।

तेहनं मध्यपश्चिमी थारु भाषामे यतेका कुछ भाषाविद् सब ह्रस्व या दीर्घके सम्बन्धमे पूर्वोसे बेसी आसान नियम प्रतिपादन करने छै कि पश्चिम के थारु भाषामे सब शब्द ह्रस्व लिखी । यै भाषामे दीर्घके प्रयोग बर्जित छै । जकर बहसके क्रममे टिप्पणीयो बेसी भेल्छै । कतेक साथी सबके बीचमे ई नियम ल्याके, यी बहसके चल्ते कुछ साथी सबके बीचमे मनमुटाव सेहो भ्यागेल छै, जे नै हैके चाही रहै ।

वेनं त यी नियम भाषाविद् सब प्रतिपादन करने छै । चाहे पूर्व के हेवे या पश्चिम के । कोनो गैरविद् सब नै । आब ऊ सब कोन अनुसंधानसे निकालल्कै से त पता नै । सुनैमे आयेल जे उच्चारणके आधार मानल गेल छै । पूर्वके थारु भाषाविद् सबके अनुसार थारुके बोलाईमे शुरु और बीचमे ह्रस्वके उचारण हैछै त अन्तमे दीर्घ के उचारण हैछै । तेहनं पश्चिमी कुछ थारु भाषाविद् सबके निष्कर्ष छै कि पश्चिमी थारुके बोलाई मे केवल ह्रस्व मात्रके उच्चारण हैछै । मगर, चाहे पूर्वके निष्कर्ष हेवे या पश्चिमके, दुनु क्षेत्रके निष्कर्षसे बहौत भाषाविद् सबके मत फरक छै । यी फरक मत वला सबके टप्पणी छै जे यी कोन चमत्करीक निष्कर्ष चियै । येहनो कही भेलै जे कोई कहे शुरु या बीचमे ह्रस्व या अन्तमे दीर्घ त कोई कहे पुरे ह्रस्व लिखी चाहे शुरुके हेवे वा बीचके वा अन्त के । यी कोन अनुसंधान भेलै । सेहो त सब विद् सबके एके निष्कर्ष होना चाही ने । यी त मनपरी तन्त्र भेलै । जकरा जे मन भेलैसे लिखलक या उच्चारण अनुसार कैह देलक । मामिला खतम ।

दोसर समूह हर्स्व र दीर्घके मामलामे नेपाली भाषाके हर्स्व दीर्घके नियमके पक्षमे देख्या परैछै । वै सबके मत छै जे यी ह्रस्व या दीर्घके नियम वेहनं ख्याल ख्यालमे नै बनल छै । साथै थारु भाषा सेहो नेपालीये भाषा नहाईत सौरशेनी समूहके चियै । तहैसे ह्रस्व दीर्घमे दुनु भाषामे बहौत एकरुपता छै या होना चाही । तहैसे ह्रस्व या दीर्घ थारु भाषामे सेहो नेपालीअनुसार लिखैके चाही । शुरुमे दिकत हेतै मगर बादमे ठीक भ्या    जेतै ।

यी त मनपरी तन्त्र भेलै । जकरा जे मन भेलैसे लिखलक या उच्चारण अनुसार कैह देलक । मामिला खतम ।

अखनी जमाना बहौत बदैल गेलै या आब फेन एक हजार वर्षसे बेसी पूर्व समयके उच्चारणमे अखनीके समयमे जोड देनाई वतेक बैज्ञानीक बात नै चियै । यी हजारो वर्ष पूरान या अपभ्रम्स उच्चारणसे कोनो स्तरीय मानक भाषा नै बनेसकै छै । हमरा सबके आगाके ओर बरहै के छै नै कि पाछा तरफ । हमर पूर्वज पहिने जे करैत रहैसे आई हम नै करै चियै । बदैल गेलै या हम वैले कानवो ने करैचियै । दोसर भाषीय लोग सब यहै आपन अपभ्रम्स भाषामे समयअनुसार परिवर्तन, फेरबदल क्याके आई स्तरीय आधुनिक भाषा (मानक भाषा) बनाबैमे समर्थ भेल्छै । हमरो सबके वै सबसे शिक्षा लेवे परतै या स्तरीय आपन मानक भाषा बनावे परतै । नेपालीके अनुकरण करने थारु भाषा मोईर जेतै, येहो नेपाली भाषा भ्याजेतै से सोच गलत चियै । बरु भावी सन्तानके नेपाली लिखैमे सेहो सहज हेतै । ऊ थारु भाषाके ह्रस्व दीर्घमे ओझर्याल नै रहतै और सब ले बोधगम्य स्तरीय मानक भाषा बनतै ।

वेनं त २०३३ सालसे जबसे भू.पू. महान्यायाधिवक्ता स्व. श्री रमानन्द प्रसाद सिंहके प्रधान सम्पादनमे “थारु संस्कृति“ पत्रिका प्रकाशन हेवे लागल रहै और बहौत अंक प्रकाशित भेलै वै समयमे ह्रस्व दीर्घले थारु भाषाके आपन नियम नै बनेने रहै । येहा हिन्दीके ह्रस्व या दीर्घ नियमसे काम चलाबै छेलै । और वै समयमे यी पत्रिका स्तरीय पत्रिका मानल गेल रहै । हमहुँ २०३७ सालसे यै पत्रिकाके नियमित पाठक या लेखक रहियै । हमर सब किताब सेहो यहै ह्रस्व दीर्घके नियमसे बान्हल छै । और यी लिखाई येहो वहै नियम अनुसार के छै या हमरा लागैये जे ह्रस्व दीर्घके हिसाबसे हिन्दी या नेपालीमे कोनो खासे फरक नै छै । जकरा बेसी बुझल हेवे जानकारी करबै ने ।
हमर विचारे जे करब सब के सहमति से करने से ठीक रहतै । यी वीन वीन प्रक्रिया अनुसार हैके चाही । यै मे ककरो जीत या ककरो हार वला बात नै हैके चाही ।

(लेखक थारु भासा साहित्य केन्द्र नेपालका अध्यक्ष हुनुहुन्छ ।)

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