हाथ दे, साथ दे मुक्ति आन्दोलन (थारु भाषा)

विचार (विश्लेषण)

सीएन थारु

प्रारम्भ
युद्धमें हारल सिपाहीके तरह थारुसब मुझ्र्याल छै । यी स्वभाविक देखल जाइछै कि चुनावमें प्रतिस्पर्धा कैरके येल प्रतिनिधिसब सोहो बिना संकोच चाकरीके लेल दौरवरहा कैर रहल्छै । आब त येहेन लागैछै कि सबसे निरीह आ मुँह दुबरा थारु जनप्रतिनिधिसब छै कारण संगे कैलाली क्षेत्र नं. १ से निर्वाचित जनप्रतिनिधी सदरखोर कारागारमें अभियुक्त बन्याल गेल्छै । जकरलेल ने कोनो प्रमाण जुटाबैके जरुरी देखल गेलै ने षडयन्त्र बुनैले मेहनत पर्लै । क्षेत्र नं.१ के जनताके अभिमतउपर खेलवाड भेल स्थितिमें स्वयम्के जनप्रतिनिधी कहाईबला थारुसब कम्तिमें लज्जाबोध करबाके चाही । यी आन्तरिक उपनिवेश संघिय लोकतान्त्रिक गणतन्त्र नेपालके चरित्र बनल स्थितिमें आब राष्ट्रिय मुक्ति क्रान्ति मात्रे राष्ट्रिय उत्पीडनके हल कैर सकैये । तहौसे थारु आब राष्ट्रिय मुक्ति क्रान्तिके अगुवाई करैले वैकल्पिक विचार खोजी करैत विचार, योजना आ संगठनके केन्द्रिकरण ओर डेग बरहाबे पर्लै । यी आत्मगत तयारी के सम्भाव्यता के खोजी सोहो चियै ।

पृष्ठभूमी
थारु आधुनिक नेपाल राज्यके सन्दर्भमें सबसे अधिक चुनौती बनल्छै । दक्षिणी समथर मैदानी भुभागमें पूरबसे पश्चिम तक बसोबास करैकेकारण थारु राणा—शाहके लजैरमें शुरुसे पर्लै । राणाकालमें थारु कल्याणकारिणी सभा गठन भेलै आ शाहकालिन परिवेशमें आपन सांगठनिक जीवन विकास कैल्कै । जब २०४६ साल के जनआन्दोलन मार्फत वहुदलीय व्यवस्था पुनस्र्थापना भेलै तकरवाद जिल्ला जिल्लाके थारु अगुवासब यकरा पार्टीके भोट बैंक बनाबैके लेल तुइल गेलै । तकर परिणाम थारुमें अजिबके बानी बिकास भेलै आ सामाजिक प्रतिरोधी क्षमता ह्रास हैत गेलै । २०५२ सालसे शुरु भेल माओवादी सशस्त्र युद्ध यी राज्यप्रति के थारुके धारणा एकाएक क्रान्तिकारी धारमें पुग्लै । करिब ३ हजारसे अधिक थारु सब क्रान्तिमें जीवन तेज देल्कै आ अखुन्वों १ हजार तीन सयसे अधिक व्यक्ति वेपता छै । दश वर्षे यी संघर्ष मालेमा विचारसे लैस भ्याके थारु राज्यके विपक्षमें लरैत येलै । एक समयमें सोझ, इमानदार आ डरपोक ठहर भेल थारु एकाएक आतंककारी सम्झेलाग्लै । थारुके वस्ती युद्ध मैदान बनैत रहलै । यहेन परिवेश निर्माण भेलै कि २०६२÷६३ के जनआन्दोलनमें लाखौं जनता सडकमें उत्रे लाग्लै । लम्बा संघर्षके दर्वियान नेपाल गणतान्त्रिक मुलुकमें रुपान्तरण भेलै मगर राज्यके औपनिवेशिक चरित्र कायमे राखल गेलै । पहौनका बैर थारुके स्वतन्त्र पहिचान आ सार्वभौमिकताउपर धाबा बोलैत मधेसी बनाबैके दुस्साहस कैल्के । दोसर बैर थारुके राष्ट्रियता दावीसहित संगठीत आन्दोलन कथित अखण्ड नामधारी प्रोक्सी आन्दालनकारी जन्माबैत राज्य दमनके नीति लेल्कै । तकर परिणाम २०७२ भाद्र ७ गते टीकापुर विद्रोह भेलै । टीकापुर विद्रोहके पक्ष विपक्षमें मत निर्माण भेल्छै । राज्यके लजैरमें ‘टीकापुर विद्रोह’ आतंकसे तुलना करैत विभत्स हत्याके रुपमें बुझहाबैके कोशिशमें छै त दोसरओर थारु राजनीतिक घटनाक्रमके रुपमें । सत्य शक्तिके सापेक्षतामें निर्माण हैछै । आ राज्य पुरे बल लगाबैत विभत्स हत्या प्रमाणित करैले चाहैछै । थारु आन्तरिक उपनिवेशसे मुक्ति के लेल यी राष्ट्रिय मुक्ति क्रान्तिके विकसित रुप रहैसे दावी कैर  रहल्छै ।

नेपालके सन्दर्भमें फासीवादके चरित्र
नेपाल में वि.सं. १९१० से मुलुकी ऐन मार्फत लागु भेल कानुन प्रावधानके जगमें हिन्दु विधिशास्त्र मार्फत अदालत न्याय कैर रहल्छै आ आर्य वाहुन जातिके रक्षा करनाई धर्म सम्झैछै । नेपाली राष्ट्रवादके नाम ल्याके अखुन फासीवादके जलम दैले उद्यत छै । आर्य वाहुन ‘सर्वश्रेष्ठ’ मान्यता स्थापित करनाई एक किसिमके फासीवाद चियै जकरा प्रमाणित करैले राज्यके मेसिनरी क्रियाशिल बन्याल गेल्छै । अनेक वहानावाजी करैत स्वयम्के स्थापित करैले आर्य वाहुन स्रोतसाधन उपर राज्यके नीति अनुकुल बनावैत लुटखसौट कैर रहल्छै । तहौसे ऊसब असुरक्षित महसुस कैरके सेना आ सुरक्षा बलमें पकड बनाबैले लागल छै । निरन्तरके येहेन क्रियाकलाप विरुद्ध प्रतिरोध सोहो हैत येल्छै । लोकतन्त्रके नाममें लुटतन्त्र संस्थागत कैररहल छै । तकरा राष्ट्रवादके नकाब मार्फत ढाकछोप करने छै ।

एकल पहिचान के प्रतिरोध
‘समृद्ध नेपाल, सुखी नेपाली’ के आडम्बरी रुप एकल पहिचानके स्वरुपमें उच्चारित हैके अर्थ सम्भवतः उपरोक्त सत्ताके सारपक्ष वर्णाश्रम धर्म विधान टिकाबैके कपटपूर्ण नारा चियै । एक भाषा, एक भेष आ एकल संस्कृतिके परिचायक नेपाली राष्ट्रियता जब अलग अलग राष्ट्रियताके अन्य आ आर्य वाहुन राष्ट्रियताके आपन सम्झे लाग्लै त एकल पहिचानके प्रतिरोध करैत वहुल पहिचान स्थापनाके राजनीति शुरु भेलै । नेपाली राष्ट्रियताके लेल यी गम्भिर चुनौती सावित भेलै आ वहुजातीय, वहुसाँस्कृतिक, वहुधार्मिक विविधतायुक्त समग्र अभिव्यक्तिके सार नेपाली राष्ट्र परिभाषित करल्कै मगर वतै वहुलराष्ट्रिय राज्य नेपाल अस्वीकृत भेलै । यी जालझेलके राजनीति गणतान्त्रिक नेपालके औपनिवेशिक चरित्र कायम राखैले उपयोग करल गेलै । २०७२ सालके संविधान यहौसे लोकतान्त्रिक संविधान नै सावित हैले सक्लै ।
‘हाथ दे, साथ दे’ नाराके साथ आब राष्ट्रिय मुक्ति आन्दोलन जारी छै । राष्ट्रिय मुक्ति आन्दोलनके दुइटा लक्ष्य रहल वात ब्रुस स्टिभके सन २००३ में प्रकाशित पुस्तक ‘नेसन्स’ इन पोलिटीक्स एण्ड रेलिजनमें उल्लेख भेल बेञ्चसप आपन लेख ‘ब्रिङ्गीङ इन्डिजिनस बोलिभियन ब्याक इनटु द सेन्टर ः इभो मोरालेस इन्डिजिनिष्ट न्यासनलिज्म’ दोहरेने छै ।
(१) लवका वैधताके आधारसब स्थापित करैके छै, (२) वी (ध्भ) पहिचान करैके छै जे लवका राष्ट्रिय ईकाइ गठन कैरसकैये (पृ. ४२)। यी लक्ष्य प्राप्तिके खातिर नेपालके सन्दर्भमें आशा जगाबैबला विकल्प आ ठोस रणनीतिके जरुरी छै । राष्ट्रिय चेतनाके निर्माण सामाजिक अगुवाके आनिवार्यता हौक आ दोसर नवउदारवादी बजारके चुनौती सामना करैले सामुदायिक अर्थतन्त्रके जग निर्माण करौक । वहुल ‘पहिचान’ के सन्दर्भमें साँगठनिक ढाँचा सैद्धान्तिकरण कैरके व्यवहारिक आ क्रियाशिल संगठन निर्माण हौक जकरा आत्मअनुसाशनमार्फत लोकतन्त्रके प्रत्यक्ष अभ्यासमें कामयावी बन्याल ज्यासके । तकर लेल समुदायके बडिपोलिटीक राष्ट्रिय चेतनाके आधार बैन सकैये । राष्ट्रियता के पुनःउत्थान अभियान एक अनिवार्य शर्त चियै कारण यकर आधार में अधिराज्यात्मकता से सम्बन्धित राष्ट्रियता के जोरल ज्यासकैये ।

निष्कर्ष
थारुमें एजेन्सी निर्माणके प्रक्रिया अगा बरहाबैले राष्ट्रिय चेतना चाही । एजेन्सीके बलमें मात्रे थारु स्वपहिचान आत्मसात कैर सकैये । थारु के आन्दोलन ‘कन्सेसन’ प्राप्तिके खातिर नै भेलै । ‘थारु आयोग’ आन्दोलनके माग कैहियो नै रहै । थारु राजनीतिक रुपमें स्वतन्त्र राष्ट्रियता दावी करैके मतलब यी राज्य के हरेक तह आ अंगमें साझेदारी खोजी कैल्कै । यी औपनिवेशिक चरित्रके अन्त्यके आह्वान रहै । लोकतन्त्र आ सामाजिक न्याय प्रत्याभूतिके अभ्यास रहै । सारमें कहल जाय त लवका समाजके निर्माण के ओर रहल यात्रा रहै । यात्रा जारी छै आ वहुलराष्ट्रिय राज्य नेपालके स्थापना एकटा विकल्प चियै ।
अन्तमें जब कुनै ज्ञानी आ निहित स्वार्थ बीच टकराव हैछै, स्वार्थीके जीत हरदम हैछै कारण ज्ञानके बलमें ईमान जोरल आबैछै आ स्वार्थीसंगे इमानके हत्या । अखुन जे कारण देख्याके आर्य वाहुनसब राज्य करैले सक्षम ठहर भेल्छै, अन्ततः लोकतन्त्र के ईमान हत्या भ्यारहल्छै । वर्णाश्रम धर्म विधानके जगमें जे हेजिमोनी निर्माण करल गेलै आब तकर विपरित हेजिमोनी निर्माण करनाई जरुरी छै । तकर खातिर समावेशिताके मान्यता विपरित नयाँ अवधारणा चाही जे समुदायके बडिपोलिटीक संरक्षण कैर सकैये । अर्थात् सत्ताके विकल्प देबेसकैये । तहौसे यतेका खेलके नियम बदल्नाई अनिवार्य ठहर भेल्छै । यकरा यथास्थितिमें राखैके बदला राष्ट्रिय मुक्तिके मान्यता बमोजिम उठल आन्दोलनसब भित्तर नयाँ किसिमके हौसला आ प्रतिबद्धता चाही जकरमार्फत राष्ट्रिय उत्पीडनसे मुक्तिके सपना साकार बन्याल जेतै । विकल्प सहितके विद्रोह एकटा रणनीतिक उपाय भ्यासकैये जकरा पुरा करैले विकल्पमें आधारित योजना आ विचार बोकैवला संगठन हौक । आब प्रोक्सी बैनके मधेसी आन्दोलन जखा दुर्दशा वेहोरैके नै छै ने भावनात्मत आन्दोलन मार्फत क्रीमि लेयर बन्याके अन्तमें क्रीमि लेयरके भरयाङ् । क्रीमि लेयरके स्वार्थ पुरा करैले आब कोइयो ने बलिदानी करौक !

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