‘मर्लो पर वदला !’ (थारु कथा)

कथा

लक्की चौधरी

अकबरे ठकुरी हुइस् ओकर नाउँ । ऐलानपुर थारु गाउँक् एक्थो लौण्डी आपन गोहीक पाछे गतियातिर नुक्ती कहली । हुँकार गोही सेन्दुरिया झसक्के पाछे पइला सर्ली । कपारीम ढकियाभर वयर टुरके लानत देखके का लानतै यी लर्का ? सोंच्ती अकबरे ओइनके लग्गे गइल । भेंरी चह्राई गैलबेला गाउँक लौण्डिन वयर टुरके घरेओर जाइतहैं । ऐलानपुर कैलालीक् एक्थो विकट गाउँ हो । जहाँ थारुहुक्रे घरौरे भेंरी पल्ले बातैं । गाउँक लौण्डिन आपन बुदीनसँग भेंरी चह्राई लदिया, बनुवाके किनारे लैजिथैं । लदियक किनारे किनारे वयरके झँरकट्टा तमाम बा । ओहैं वयर टुरे लौण्डीन जैथैं । वयरके चटनी, कपुवा बरा मिठ लग्ठीन् सोङग्रान बुदी हे । तवमारे लौण्डिनहे वयर टुराई लैजिथी । भेंरी वनवक किनारे छोरके दिनभरहस वयर टुर्ना काम रथिन हुँकार । लाले, हदियारे पाकल वयर देखके लौण्डिनफे बरा खुशी हुइथैं । खाइफे मिल्ना ओ टुरके घरेफे लैजाई मिल्ना । आजकल गाउँक सबके घरक् छँप्रामे वयर सुख्वाइल देखके घरे सुहावन विल्गाइथ् । कोई छँप्रामे वयर सुख्वाइ दर्ले बातैं । कोई बजियानी मिर्चा । सब घरक छँप्रा लालेलाल बातिन् ।

अकबरे गाउँक जिम्दर्वा हो । थारु गाउँमे थारुनसे पाछे अइलो पर गाउँमे ओक्रे रवाफ बातिस् । पहाडसे तराईमे घुमफिर करे आइलबेला गाउँक समथर जग्गा देखके उही लोभ लग्लिस कति हुँ । हमार बुदु, आजा हुक्रे ओकरलाग जग्गाके व्यवस्था कैदेले रहैं । शुरुमे आइल बेला बरा मजा व्यवहार देखाइल । नात लेके बोलल । किहु बाबा, किहु काकु, किहु बरापु, किहु बुदु, किहु दिदी, बहिनियाके नात लगाके बोलल । गाउँक मनै ओकर व्यवहार देखके नजिक होजिथैं । पहाडमे बरा गरिबी रहल बात बत्वाइल । वरषमे नौ महिना चउरक भात नैखाइल सुनाईल । हुइल उत्पादनसे तीन महिना मुस्किलसे भात खाइ पुगल ओकर बात सुनके गाउँक मनैनहे बरा सोग लग्थिन् । कबु कोदो, कबु फापर तो कबु जंगली जडिबुटी फलफूल खाके पेट पालल बात सुनके हमार आजाहुक्रे पाँच कठ्ठा जग्गा अकबरेहे दान दैदेलैं । ओहे जग्गामे मेहनत करके कुछ दिन ऊ खाइल पियल, पहाडसे आपन परिवार लानल । गाउँक मनै आपन मेहनतसे ओकर घर बनादेलैं । ओहैं घरम बैठके ऊ गाउँमे कुछ समय गाउँक मनैनसँग दुःख सुख कैके बैठल । गाउँक मनैनके दुःखमे साथफे देहल । ओकर व्यवहारसे प्रभावित होके गाउँक मनै सक्कु चिजिक साथ सहयोग ऊही देलैं ।

पाँच सात वरष पाछे अकबरे पहाडसे आपन गाउँक मनैनहे गाउँमे बोलाइल । जग्गा, जमिन, उत्पादन सक्कु देखाइल । ओकर पहाडसे आइल गाउँक मनै बरा खुशीसे तराईक समथर जग्गा जमिन ओ उत्पादन हुइल अन्नके अवलोकन कर्लैं । ओइनहे फे लोभ लग्लिन । आपनलाग फे ओहे गाउँमे कुछ जग्गाके व्यवस्था कैदेहकलाग अनुरोध कर्लैं । अकबरे तवसम गाउँक सक्कु समस्यासे जानकार होसेकल रहे । वनपुरान घरक छोटका मँगरु चौधरी बरा मद्वा रहैं । अकबरे खोव उहिनहे दारु पिवाए । संगे खैनापिना कर्लक ओरसे मँगरु खोव विश्वास करैं । हुँकार आपन नाउँमे आठ विघा जग्गा रहिन् । हुँकार जग्गामे अकवरेक आँखी लागल रहिस् । एकदिन मँगरुहे ऊ जाँर पियल बेला प्रस्ताव राखल । मोर पहाड गाउँक मनै बरा समस्यामे बातैं । तराईमे आके हमार गाउँमे बैठ्ना सोच्ले बातैं । कुछ जग्गा ओइनहे देहे परल, ओकर प्रस्ताव रहिस् । मँगरु ऐस आरामवाला रहैं । पढल लिखल नैरहैं । प्रस्ताव सुन्तिकी सिधै ‘होजाई’ कहिदेलैं । “कत्थुक जग्गा चाही ? मै बातु झे मलिक्वा” मँगरु छाती पिट्टी कहलैं ।

ओत्रा बात सुनके अकवरेक लोभ आउर बढ्गिलिस् । जाँर दारु, शिकार खवाईबेर आपन पैसा खर्च करल ऊ सक्कु हिसाव रख्ले रहे । मँगरुहे ऊ बात पता नै रहिन् । कबु सुर्ती खवाए, कबु विंडी चुरोट पिवाए । घरैया दारु पिके विग्रल ओइने कबु बजार घुमे जाइँत् । ओहैं विदेशी ब्रान्डके महँगा दारु ओ सुरिक शिकार खवाए अकबरे मँगरुहे । मँगरुक् सँगे गाउँक दोसर थारु झगरुफे विग्रल रहैं । नाउँ झग्रु रलोपर ऊ बरा सिधा रहैं । किहुसे झग्रा कर्ना तो दूर आँखर बोली फे नै निक्रिन् । पढल लिखल ऊ फे नैरहैं । तीन जनहनके खोव खैनापिनामे जोरी जमल रहिन् । अकबरेक् गाउँमे छोटमोट दोकान रहिस् । खोकामे दुई चार हजारके लगानीमे शुरु करल दोकान पाछे जम्कादर्ले रहे । दोकानमे रहल सक्कु सामान मँगरु ओ झग्रुक लाग निःशुल्क बरावर रहिन् । ज्या मन लागता खाऊ । आपन त हो कहे अकबरे । मने चिप्पसे सक्कु सामानके हिसाव ऊ दायरीमे टिपके राखे । बह्राचह्राके हिसाव लिखे । ऊ बात मँगरु ओ झग्रुहे पता नै रहिन् ।

एकदिन अकबरे सदरमुकाम जैना प्रस्ताव करल दुनु जनहनहे । साथमे आपन कागजात, लालपूर्जा, नागरिकताफे बोकक कहल । “शहर बजारमे जैबो तो परिचय खुल्ना सामान लेके जाईपरथ् । खापिके कुछु समस्या अइलसे, हेरागिलसे ओक्रे आधारमे मनैनहे पहिचान खुलत” अकबरे सम्झाइल । घरे पुग्ना सहज हुइना बातफे ऊ मँगरु ओ झग्रुहे कहल । ओइनहे सही लग्लीन् । सक्कु कागजात सहित धनगढी बजार गैलैं । झग्रुकफे पाँच विघा जमिन आपन नाउँमे रहिन् । दुई छावा ओ तीन छाइक बाबा झग्रु बरा इमान्दार रहैं । अकवरेक सल्लाहअनुसार जग्गाके लालपूर्जा, नागरिकता झिल्लीमे लपेटके सुर्केनी झोला भिरके बजारओर लग्लैं । बजारमे पुग्तिीकी अकबरे दुनु जनहनहे मिझनी खवाइल । विदेशी व्राण्डके दारु ओ मुर्घीक फिँडवा खाके ओइने बरा खुशी हुइलैं । एक घचिकमे आइने हटमटैना होगिलैं । अकबरे यिहे हो मौका कहिके मालपोत कार्यालय ओर ओइनहे लेके गैल । ऊहिसे आघे ओकर चिन्हल जानल मनैनहे मालपोत कार्यालयमे ठिक्क पारेके धर्ले रहे अकवरे । ओकर पहाड गाउँक दुई तीन कर्मचारी मालपोतमे काम करैं । ओइनहे समयसमयमे भेट करे अकबरे । गाउँक जग्गा पास करेपर्ना बात बत्वाके ठिक्क पर्ले रहे । ओहे अनुसारके ऊ चाँजोपाँजो मिलाइल ।

ऊहीहे देहल पाँच कठ्ठा जग्गाफे मँगरुक आजाके जग्गा रहिन् । तवमारे अकबरे मँगरुसे धिउर दोस्ती करल हो । मँगरुक आजा हँुकार बुदु ललतु चौधरीहे जग्गा पास कर्ले रहैं । ललतु चौधरी आपन छावा शिकारु चौधरीहे जग्गा पास कर्लै । शिकारुक् एक्थो किल छावा रहैं मँगरु । मँगरुक पाँचथो बहिनिया रहिन् । सबके भोजविहा कैके पठासेक्लैं । अकबरे आपन भोगचलन करल जग्गा आपन नाउँमे करे खोजल रहे । मँगरुहे ओ झग्रुहे ओत्रा दिनसम शिकार दारु खवैनाके कारणफे ओहे रहे । धनगढी मालपोतमे लैजाके ऊ पाँच कठ्ठा जग्गा पहिले आपन नाउँमे कराइल । बाँकी जग्गाके लाग ऊ ओहैं प्रस्ताव राखल । मँगरुहे खर्च पानी जत्रा चाही मै देम । हुँकार जत्रा जग्गा बातिन सक्कु मोर नाउँमे कैदेहे परल कहिके ऊ कहल । मँगरु मत्वार रहैं । “मलिक्वा ज्या कहबो मै तयार बातुँ । जहाँ कबो ओहैं औथाछाप मारम” मँगरु कहलैं । अकबरे हे आउर का चाहल उहीसे धेउर । ऊ मँगरुके सक्कु आठ विघा जग्गा आपन नाउँमे कराइल । मँगरु मत्वारेमे अकबरेक् नाउँमे जग्गा कैदेलैं । “मलिक्वा पर्ली बातैं हमार का चिन्ता बा ।” वेहोसे अवस्थामे ऊ बरबरैलैं । मँगरु आपन नाउँक जग्गा अकबरेक नाउँमे गैलफे पता नैपैलैं ।

बहुत समय सँगे खैलैं पिलैं । विस्तारे मलिक्वा मँगरुक नाउँमे रहल जग्गा आपन हो कहिके चिन्हैना प्रयासमे जुटल । मँगरुहे खवाइल पिवाइल सक्कु हरहिसाव सार्वजनिक करल । मँगरुसे अपने पाँचलाख रुपियामे आठ विघा जग्गा किनल बात बत्वाइल । डायरीमे टिपल हिसावमे सुन्ना थपके ऊ जैसिक तैसिक पाँचलाख पुगाइल । सक्कु कागजातमे बल्गर हुइल तव अकबरे सार्वजनिक करल । आव ऊ गाउँक जिम्दर्वा बनगिल । गाउँक मनै ओकर दयनीय अवस्था देखके दयामायासे ऊहीहे पाँच कठ्ठा जग्गा सहयोग करल रहैं । मने विस्तारे ऊ गाउँघर आपन पहाडके मनैनहे बैठा रख्ले रहे । थारुनके जग्गा थोरचे थोरचे कैके विक्री कर्वइनामे अकवरे सफल हुइल रहे । ऊ पढल लिखल रहे । लर्कापर्का शहरमे पह्रिन । नात नतकुर हुक्रनहे गाउँमले बैठाके ऊ बल्गर होगिल । गाउँमे कुछु समस्या अइलसे पहिले अकबरेहे गुहारे पर्ना अवस्था गाउँमे हुइलिन् । ढाक, रवाफ, सान सक्कु चिज होगिलिस अकवरेक । तवमारे ऊहीहे गाउँक थारुलोग मलिक्वा कहैं । ओकर लर्कापर्का, नतिया नतिनिया हुक्रनहे मैया, बाबु कहिके सम्बोधन करैं ।

मँगरुक जग्गा अकबरे सखाप पारल । झग्रु ओ गाउँक मनैनके जग्गा ओकर नातनतकुर लागके ओर्वा दर्लैं । गाउँमे थारुलोग पहिले जग्गाके मालिक रहिंत । चालिस पचास वरष पाछे त ओहे थारु अकबरेक घरम काम करुइया बुक्रहामे परिणत होगिलैं । कोई गाउँक मनै ओक्रो जग्गामे अधिया करके पेट पालैं तो कोई ओक्रे घर मन्जुरी करैं । गाउँमे अकबरेक राज होगिलिस् । ओकर लर्कापर्का गाउँक लौण्डीनहे सताई लग्लैं । अकवरेफे गाउँक सुग्घर जनेवा, तरनिनहे सताई लागल । मतवार होके गाउँमे दुःख देहे लागल । थारु चेलीबेटीनहे बलात्कार करे लागल । ऊ देखके गाउँक मनै बरा अन्यायमे परल महशुस कर्लैं । सक्कुजे सल्लाह कर्लै कि आव अकबरे ओ ओकर मनैनहे कैसिक समाजसे लखेटना हो ? कचहरी करके आब कुछु करे परल कि अन्याय, शोषण सहके बैठे परल सल्लाह कर्लैं ।

एकदिन दिनदहाडे अकवरेहे गाउँक एक्थो टर्नीहे जवर्जस्ती करत देख्लैं । ओकर ज्यादतीके सीमा नाघल देखके गाउँक मनै जुर्मुरैलैं । कोई अखैन, कोई चप्का तो कोई चिरपट लेके दौडलैं । ऊहीहे बाँधके खोव अडघटाहा हुइनागरी पिटलैं । अकबरे घाहिल होगिल । ओकर मनै उहीहे उपचारके लाग अस्पताल लैजिथैं । उहीहे भित्री चोट जोरसे लागल रहिस् । जहाँतहाँ घाउफे हुइल रहिस् पिटाई खाके । ऊ एक्थो जुक्ति सोंचल । गाउँक थारुनसे कैसिक बदला लेहे सेकजाई कहिके । उपचार कर्ती कर्ती ऊ गाउँमे जाके गाउँक मनैनसे माफी मग्ना सोचल । ओकर विग्रल हालत देखके अस्पतालके चिकित्सक उहीहे डिस्चार्ज करे नै मानतहैं । तवोपर ऊ जवर्जस्ती कैके गाउँ गिल । विरामी हालतमे गाउँ पुगल ।
सक्कु गाउँक मनैनके जुटैला करल । सक्कु जनहनहे कहल, “मै बरा पापी बातुँ । आपन गाउँक मनैनहे खोव सतैनु । आव मोर मर्ना दिनफे आइलागल । धेर दिन नै बाँचम । महिनहे माफ कैदेऊ । आब कब्बु ओइसिन काम नैकरम ।” गाउँक मनैनके गोरा पकर पकर रोई लागल । ओकर व्यवहार देखके गाउँक थारुनके मन पगल जिथिन् । अत्रा धेउर माफी मागता तो लेऊ माफ कैदेऊ कहिके बुढापाका लोगफे कहेलग्लैं । तव गाउँक मनैफे उहीहे माफी दैदेथैं । मने अकवरेक मनमे आभिन पाप भरल रहिस् । गाउँक मनैनसे ऊ मरके फे बदला लेना जुक्ति सोच्ले रहे । ओहे जुटैलामे ऊ कहल, “आब मै धेर दिन बाँचम कनाहस नैलागथ् । मोर हालत खराव बा । मै मरम तो गाउँक मनै मिलके मोर घाँटी काट देहो । घाँटी, हात गोरा सब काटके किल महिहे लदियामे लैजाके जरैहो । मरल मनै महिहे कुछु पीडा नै हुई । ओत्रा सजाय देवो तो सायद भगवान महिहे स्वर्गमे माफी कैदिहीं । मै बहुत पाप कर्ले बातुँ । गाउँक चेलीबेटीनहे दुःख देले बातुँ ।”

ओकर बात गाउँक मनैनहे ठीके लग्लिन् । ठीक बा । अपनेक ओहे चाहना बा कलसे अपने मुबी तो हम्रे ओहे अनुसार करब कहिके गाउँक मनै कथैं । जुटेला ओराजाइथ् । अकबरे सोच्ले रहथ्, “आब गाउँक थारुनसे जित्ती घरिमे तो बदला लेहे नैसेकम । मरकेफे बदला लेम ओ यिनहे फँसैम ।” फेन ऊ उपचारके लाग अस्पताल नैजाइथ् । ओकर अवस्था बहुत कमजोर रथिस् । महिना दिनपाछे ऊ गाउँक घरमे मरजाइथ् । मरल पाछे ओकर इच्छा पूरा कर्ना गाउँक मनै आपन दायित्व सम्झथैं । मर्नासे आघे अकबरे आपन लर्कनहे सम्झैले रहथ् । जब थारुहुक्रे मोर घाँटी, गोरा, हात कटहीं तब्बहे प्रहरीनहे खवर करहो । पक्राउ करैहो । थारुहुक्रे घाँटी, हात गोर काटके बाबक हत्या कर्लै कहिके कहहो । ओकर लर्का ओहे अनुसार कर्ना सोच्ले रथैं । अकबरे मरलपाछे आब ओकर मर्नीकर्नी कर्ना सोच गाउँमे बनथ् । सक्कुजे अकबरेक घरमे जम्मा हुइथै । गाउँक भद्र भलाद्मी घरौरे किसानलोग जम्मा हुइथैं ।

सक्कुजे सल्लाह कर्थै कि अकबरे मरम तो महिन अइसिक कटहो, तव मोर इच्छा पूरा हुई ओ स्वर्गमे भगवान माफ करहीं कले बा । सल्लाहअनुसार थारुलोग मरल अकवरेके घाँटी, हात गोरा काट देथैं । काटकुट करके उहीहे लदियाओर जराईकलाग लैजिथैं । लदियामे जरैनासे पहिले ओहाँ प्रहरी पुग जिथैं । प्रहरी अकबरेक लाशहे हेर्थै । घाँटी, हात गोरा सब अलग अलग देख्थैं । के काटल ? के मारल अकबरे हे ? प्रश्न कर्थैं । गाउँक मनै अकबरेके अन्तिम इच्छा बतैथैं । मने प्रहरीलोग विश्वास नै कर्थैं । जे जे लदियामे जराईक लाग पुगल रहथ् । सक्कु जनहनहे प्रहरीलोग पक्राउ करके धनगढी जिल्ला प्रहरी कार्यालयमे लैजिथैं । अकबरेक लाशहे पोष्टमार्टमके लाग सेती अञ्चल अस्पतालमे लैजिथैं । पोष्टमार्टमके रिपोर्ट अकबरेहे घाँटी, गोर हात काटके मारल कहिके तयार हुईथ् । सक्कु गाउँक मनै बेकारमे फँसजिथैं ।

समयमे बुद्धी नै पुगैबो तो अस्ते हुइथ् समस्या । पढल लिखल नैरबो तो अस्ते दुःख मिलथ । अकबरे कत्रा बदमास रहे कना यी कथासे पुष्टि हुइथ् । जियतसम तो गाउँक मनैनहे दुःख देहल देहल । ‘मर्लो पर बदला’ लेहल । गाउँक मनै छक्क पर्थै । आवसे आपन लर्का पर्कनहे पढालिखाके ज्ञानी बनैना कसम खैथैं । आजकल ऐलानपुर गाउँमे चर्चा चलथ् “अकबरे मिर्चा खैले तो नैहुई लेकिन अकबरे जात्तिक अकबरे ठकुरीक हस् भोभैना कोरु रहथ कि का ?”

(कथा सुनुइयनहे सोनके माला, हुँक्रा भरुइयनहे फूलक माला, यी कथा सक्कुहुनथे पुगे, कहेबेला फटाफट आए ।।)

(धनगढी–५, कैलाली)

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