थारु अत्वारीः सुरज जलम्

संस्कृति

छविलाल कोपिला

अट्वारी थारु जातिनके महत्वपूर्ण व्रत पर्व हो । माघ पाछक थारु जातिनके दुसरा भारी ट्युहार मान्जाइठ् । अट्वारी अष्टिम्की पाछेक दुस्रा अट्वार अथवा अमाँवस पाछेक पहिल अट्वारहे अट्वारी मन्ना चलन बा । कोइ–कोइ पाँच अटवार अटवारी व्रत रठाँ । पाँच अट्वार पाछे ठिक्के डशिया परठ् । ओहेसे फेन हमार पुर्खन यी सक्कु चाजहे ध्यानमे धैके अमाँवस्के पहिल अट्वारहे बर्का अट्वारीके रुपमे लेलक हुई । कौनो साल पितरपक्ष या समय हान परठ्ते पाँच अट्वरियनके अटवारी फेन बिगर जैठिन् ओ अटवारी फेन दुइठो हुइलागठ् । यी पर्व ढेरहस भदौ महिनाम परठ् ।  अट्वारी थारु जातिनके महत्वपूर्ण व्रत पर्व हो । माघ पाछक थारु जातिनके दुसरा भारी ट्युहार मान्जाइठ् । अट्वारी अष्टिम्की पाछेक दुस्रा अट्वार अथवा अमाँवस पाछेक पहिल अट्वारहे अट्वारी मन्ना चलन बा । कोइ–कोइ पाँच अटवार अटवारी व्रत रठाँ ।

पाँच अट्वार पाछे ठिक्के डशिया परठ् । ओहेसे फेन हमार पुर्खन यी सक्कु चाजहे ध्यानमे धैके अमाँवस्के पहिल अट्वारहे बर्का अट्वारीके रुपमे लेलक हुई । कौनो साल पितरपक्ष या समय हान परठ्ते पाँच अट्वरियनके अटवारी फेन बिगर जैठिन् ओ अटवारी फेन दुइठो हुइ   लागठ् । यी पर्व ढेरहस भदौ महिनाम परठ् ।  प्रकृतिपुजक थारु समुदाय खासकैके यी पर्व दिन (सूरज, सूर्य) के पूजा कैना चल बा । यकर उत्पत्ति भदौ महिनक अँधरियामे हुइल रहे । जौन दिन अमावँसके पहिल अट्वार रहे । अटवारहे रविबार फेन कठाँ । रवि कलक सुरज । जब भयावन अँधरिया रातमे सुरजके जन्म हुइल । तबसे यी संसार ओज्रार हुगैल् कना किम्बदन्ती बा । प्रकृतिप्रति विश्वास कैना थारु समुदाय, सूरज ओजरारके प्रतीक हुइलक ओरसे फेन यकर पूजा ओजरारदाताके रुपमे कैलक हुइट् । सूरज अँधार चीरके ओजरार कराइठ् । जिहीसे मनैनहे किल नाही विश्वके सक्कु प्राणीजगतहे काम कैना लिरौसी बनाइठ् ।  ओसिक ते यी पर्व मन्नाके आउर मिथक फेन जोरल् बा ।

अट्वारी व्रत बैठ्ना ट्युहार हुइलक ओरसे शच्चिरके डिनभर मच्छरी मर्ना आउर टिनाटावन खोज्ना कैजाइठ् । मच्छरीक् सुखौरा पहिलेहें फेन बनाइल रहठ् । अटवारीमे मच्छरी बिशेष मान्जाइठ् ।

श्रीभगवत पुराणअनुसार यी व्रत सबसे पहिले सन्तनु राजाके पुत्र राजकुमार देवदत्त अट्वारी व्रत रहलाँ । उहाँ सूर्य उपासक हुइट् । ऊ भोज वियाह फेन नैकैलाँ । यी राजकुमार देवदत्त चार भाइ रहिंट् । बर्का देवदत्त, भीष्मपितामह, पाण्डु ओ विदरु गुप्ताके लर्का देवदत्त, सुनितीके लर्का भीष्मपितामह अन्ध्रा ओ पाण्डु पाण्डा रोग हुइलक ओरसे पाण्डु नामाकरण हुइलिन् । धार्मिक दृष्टिमे हेर्बाे सूर्यपूजा कर्बाे ते पाण्डु रोग मेटजाइठ् कना प्राचीन धारणा बा । ते यी व्रत पहिले राजकुमार देवदत्त रहलाँ, तब पाण्डु, कुन्ती, माद्री, कर्ण ओ भीम ओकर दादु राजा परिक्षित सूर्य हेतु श्रीमदभागवत सुनैलाँ । (सत्गौवाँ, २०६८ ः १३) यी अब व्रत रैह्के आपन बाबक सोचके उद्धारके लग श्रीमदभागवत सुनैलाँ, ओकरवाद सब द्यौंटा फेन यी महान पर्व माने लग्लाँ । बरे बरे मुनिलोग सूर्यके उपासकके रुपमे सूरजके जन्मदिन अट्वारहे अट्वारी माने लग्लाँ ओ आझ फेन यी ट्युहार चलन चल्टीमे बा । (सत्गौवाँ २०६६ ः २)    डोसर मिथक महाभारत कथासे जोरल बा । पाँच पाण्डवमध्ये सबसे बल्गर भेवाँ (भीम) रहिंट् । जब कौरव ओ पाण्डवके लडाइ पर्लिन । उहे समय भेंवाँ रोटी पकाइ टहिंट् । ऊ रोटी पकैटी–पकैटी टावामे छोरके चल्गैलाँ ।

जब लराइसे भुँखासल अइला ओ उहे एक्के करे पकाइल रोटी खाके आपन पेट भरैलाँ कना तर्क बावई । कलेसे केक्रो तर्क भेंवाँ थारुराजा दंगीशरणहे लराइमे सघैलक ओ सबसे बल्गर हुइलक ओरसे भेंवाँहस् बल्गर हुइना संकल्पसेसाथ अटवारीमे भेवाँक पूजा कैलक विचार फेन जनमानसमे बा । अट्वारीमे सबसे पहिले अक्के करे रोटी पकाके भेवाँहे पुज्ठाँ कना किम्वदन्ती फेन बा । मने, ठाउँअन्सार थारु समुदायमे फेन अलग–अलग चलनप्रक्रिया बा ।  अट्वारी व्रत बैठ्ना ट्युहार हुइलक ओरसे शच्चिरके डिनभर मच्छरी मर्ना आउर टिनाटावन खोज्ना कैजाइठ् । मच्छरीक् सुखौरा पहिलेहें फेन बनाइल रहठ् । अटवारीमे मच्छरी बिशेष मान्जाइठ् । आउर सरशिकार नैरहठ् । साग सेवाँरमे पोंइ, ठुसा लगाके पकाइल रहठ् । जब सन्झ्या हुई ते ‘डटकट्टन’ (दर) के नाउँसे कुछ मीठ खैना रिझाइल् रहठ् । व्रत बैठुइयन यी रातके मुर्गी बस्नासे पहिले खैठाँ । यदि खैनासे पहिले मुर्गी बोल्गैलाँ कलेसे ऊ खाई नै मिलठ् । कोइ खालेहल कलेसे ऊ अँट्वारी व्रत रहे नैपाइठ् । या ऊ डुठेह्रु हुजाइठ् कना मान्यता बा ।  व्रत बैठुइयन अँट्वारके दिन बिहाने लहाके भुख्ले घरक बहरी या अँग्नामे गाइक गोबरसे सुग्घरके गोब्रैठाँ । आझुक दिन कोरे आगीमे सक्कु खाना पकाजाइठ् । थारु समुदायमे भन्सामे रहल् भित्तरके आगी नै बेल्सठाँ ।

अग्रासन चेलीबेटिन बहुत अस्रा कैले रठाँ । ओइने बहुत मानमर्जाद फेन कैठाँ । थारु समुदायमे मानमर्जाद जाँर–मद ओ सरशिकार खवाके कैठाँ ।

पुरान आगी चोखा नै मान्जाइठ् । उहे ओरसे गनयारी काठ घोटके निकार चोखा आगीले रोटी पकैठाँ । अन्डिक रोटी, गोहुँक रोटी, पक्की, अमरुट्, केरा, तरुल, उस्नल् घुइया, मिठाई दारल् मोर्सक भूजा ओ मिठैहा पानी खास मान्जाइठ् । नोन, बेसार, मिर्चा पहिल दिन बर्जित         रहठ् ।   जब सक्कुचाज पकाके तयार हुइटे बिहान गोब्रैलक ठाउँमे काठक बैठ्ना (पिर्का या कौनो बैठ्ना वस्तु) पर बैठके आपन प्रक्रिया आगे बर्हैठाँ । खैनासे पहिले अगयारी (अग्यारी) देना चलन बा । अगयारी कलक गाई गोबरसे गोब्रैलक ठाउँमे आगिक अङ्ठा धैके ओँह्पर सर्री धूप, मस्का ओ खाइक लग तयार कैलक बस्तु (अन्डिक रोटी, गोहुँक रोटी, पक्की, अम्रुट्, केरा, तरुल, उस्नल घुइया, मिठाई दारल मोर्सक भूजा ओ मिठैहा पानी) सक्कु अक्केमे सानके चर्हैनाहे कठाँ । सूरज फेन आगीके मुख्य श्रोत हो उहेसे सबसे पहिले आगीहे प्रसाद ग्रहण करैना चलन आइल् । अगयारी देके तीन चो दाहिन ओ तीनचो बाउँ पाजरसे पानीले पर्छना फेन चलन बा ।

कोइ–कोइ पाँच या सात फेरा फेन सर्छठाँ । ओकर पर्से आपन चेली–बेटिनके लग फेन अग्रासनके रुपमे सक्कुचाज निकर्ना चलन बा । निकारके तब बल्ले खैना चलन बा । खैनाक्रम दिन रहटसम किल चलठ् । दिन बुर्टीकिल खैना काम बन्द हुजाइठ् । डोसर बिहानके भात, खँरिया, फुलौरी, पोंइ मिलाइल ठुसा, सुखौरा मच्छरी, घुइयक टिना, भेन्डी लगाके विजोर संख्यामे टिनाटावन बनाजाइठ् । जब तयार हुई ते काल्हिक नन्हें लहाके अगयारी देके फेन सक्कु चाज अलग–अलग दोना–टेपरीमे ‘अग्रासन’ कार्ह जाइठ् ओ बल्ले खैना शुरु हुइठ् । खानपिन ओराई ते कार्हल् अग्रासन आपन चेलीबेटिन घर देहे जैठाँ । असिके अग्रासन देहे गैलेसे आपन चेलीबेटिनसे आपसी सद्भाव बर्हठ् । अग्रासन चेलीबेटिन बहुत अस्रा कैले रठाँ । ओइने बहुत मानमर्जाद फेन कैठाँ । थारु समुदायमे मानमर्जाद जाँर–मद ओ सरशिकार खवाके कैठाँ । असिके अटवारी पर्व ओराइठ् ।

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