दहित कलक गोपालवंश कि दैत्य वंश !

खोज अनुसन्धान

महेश चौधरी

वि. सं. २०२८ सालम ‘गोचाली’ प्रकाशन करबेर हमार भाषिक नीति बनाइक लाग हम्र एक्ठो ‘थारू भाषा तथा साहित्य सुधार समिति’ गठन करल रलही । हम्र थारू भाषा ओ साहित्य सुधार कर्ना क्रमम बुर्जुवा साहित्यके सिर्जना कर्ना नाही कि हम्र थारू भाषाम प्रगतिशील साहित्यके सिर्जना कर्ना व वाकर जग बैसैना हमार उद्देश्य रह । काकरकि प्रगतिशील साहित्यके माध्यमसे हमन समाज परिवर्तन कर्ना व युगह बदल्ना अभियान रह । थारू भाषाके सुधार कर्ना कलक हमार भाषाके अध्ययन कर्क, यहम रहल त्रुटिह सच्याक थारू भाषाह परिमार्जित कर्ति लैजैना व लौव ग्रन्थ रचना कैक प्रकाशन कर्ना हमार उद्देश्य रह । ताकि भविष्यम यह भाषाम एम.ए.सम पढ् लिख कर सेकजाए । सरकारी काम काजक भाषा बनाई सेकजाए । थारू भाषा, साहित्य, कला, संस्कृतिके विकासक लाग एक्ठो प्रज्ञा प्रतिष्ठान गठन कर सेकजाइ । यह भाषा साहित्यम विद्यावारिधि उपाधि हासिल कर सेकजाइ । यह मान्यतासे अभिप्रेरित होक हम्र गोचाली पत्रिकामार्फत एक्ठो थारू भाषा तथा साहित्य सुधार समिति गठन कर्ल रही ।

प्राचीन समयम थारू कहना कउनो जात नै रह । काकरकि तिब्बती–बर्मन भाषाम ‘था’ कलक ‘सिमाना’, वरू’ कलक ‘बैठना मनै’ अर्थात ‘थारू’ कलक ‘सिमाना क्षेत्रम आदिम समयसे बसोबास कर्ना समुदाय कहना अर्थ लागठ ।

थारू जातिह यी क्षेत्रक सब्से पुरान बासिन्दा मान जाइठ । भूमिपुत्र मान जाइठ । होमोसेपियन्क सन्तान मान जाइठ । प्राचीन समयम थारू कहना कउनो जात नै रह । काकरकि तिब्बती–बर्मन भाषाम ‘था’ कलक ‘सिमाना’, वरू’ कलक ‘बैठना मनै’ अर्थात ‘थारू’ कलक ‘सिमाना क्षेत्रम आदिम समयसे बसोबास कर्ना समुदाय कहना अर्थ लागठ । यी सीमाना क्षेत्रम बैठना समुदायम वर्ण व्यवस्था नै रह । भारतम अंग्रेजक शासन रहल ब्याला नेपाल –भारत सीमानाबारे सन् १८१४ से नेपाल–अंग्रेज युद्ध शुरु हुइल रह । यी युद्ध दुई बर्षसम् चलल रह । युद्धम नेपाल हारल तब सन् १८१६ म सुगौली सन्धी हुइल रह । भारतम अंग्रेजक शासन रहल ब्यालासम नेपालक दक्षिणी सीमाना गंगा लदीयासम रह । गौतम् बुद्धक पालासम (ई.पू.५६३–ई.पू. ४८३) ‘नेपाल’ नाऊ प्रचलनम आसेकल रह । यहिसे पहिल बुद्धके समयसे आग्घ नेपाल या याकर आन्जर पान्जर समक भूभागह ‘रुद्र देश (शिव देश), किन्नर देश, किम्पुरुष देश, किरात देश या हिमवत खण्ड (हिमाली देश)’ आदिफे कहट । यी नाउँमसे किरात देश व हिमवतखण्ड थोरचे धिउर चलन चल्तीम आइल रह । वहवर्से हम्रफे प्राचीन कालक सन्दर्भम यह लोकप्रिय नाउँ नेपाल जो प्रयोगम लन्ना उचित सम्झल रही ।

प्राचीन नेपालक भौगोलिक सीमाना कहाँसम रह कहना विषय खोजक विषय हो । ‘अथर्व परिशिष्ट’ (लगभग बुद्धके समय) म ऊल्लेख करलअनुसार ऊ ब्याला नेपालक सिमाना आसाम (भारत) से पश्चिम, पञ्जाबसे पुरुब, मिथिला–बनारससे उत्तर हिमालयसमक भूभागह नेपाल कहजाए कहना संकेत देहथ । समुद्र गुप्त (ई.३३० से ई. ३७५) क प्रयाग (इलाहावाद) प्रशस्तीम लिखल अभिलेख अनुसार ऊ ब्याला नेपालक दक्षिणी सीमाना बैशाली (भारतक बिहार राज्य) सम् रहल जान जाइठ । ‘वार्हस्पत्य अर्थसूत्र’ (छैठौ शताब्दी) अनुसार नेपालह चार सय योजन (सोह््र सय कोश) के घेरा हुइलक महा विषय (विशाल क्षेत्र) कहल बाट । चिनिया यात्री ह्वेनत्सांग (भारत यात्रा– ई. ६२९–६४३) म उल्लेख हुइल अनुसार ऊ ब्याला नेपालक क्षेत्रफल ४००० ली. (६६७ माइल) रहल रह । वाकर आकार गोलाकार बताइल बाट । ऊ समय दख्खिन सिमाना गंगा लदीयासे उत्तर तराईम बसोबास कर्ना मनैनम कौनो जातभात छुट्याइल नै रह । सक्कु जहन सूर्यवंशी कहट । हुकहनक् राजधानी कॉशी, बनारस, विदेह, मिथिला रलहन । अयोध्या शहर भारत देशम नै रह, मिश्र देशम रह । परिवारक सबसे बर्कक् बर्का छावह इक्ष्वाकु अथवा ओक्काका कहट । वह बर्का परिवार बाहेक औरजे राजा चुनजैना परम्परा नै रह ।

इक्ष्वाकु परिवार बाहेक अउर परिवार चुुनाउम गणनायक पद राजा (जनक, शाक्य) पदम उठ नै पाइँट । गंगा लदीयासे उत्तर घनघोर जंगल रह । पुरुव–पश्चिम अइना जैना मार्ग गंगा लदीया रह । प्रयाग (इलाहावाद) से पुरुव जत्रा फेन मनै ऊ समयम यी क्षेत्रम बैठत् । सब जान सूर्यवंशी हुक्र‘ बैठत् । यी क्षेत्रम बसोबास कर्ना मनै प्राकृत भाषा बोलत । चन्द्रगुप्त मौर्यके पालासम पाली प्राकृत भााषा, ब्राह्मी लीपि यहॉक राजकीय भाषा रह । चन्द्रगुप्त मौर्यह शकला (शाक्य) फे कहठ । काकरकि हिकाहार पूर्खा कपिलवस्तु क्षेत्रसे छारा कर्क मगध (बिहार) पिप्पलिवनम आक बैठ लग्ल । पिप्पली वनम मन्जोर बहुत रहनावर्से हुकहिन मौर्य कह लग्ल । धनवज्र, बज्राचार्य, सम्पादित, लिच्छिविकालके अभिलेख, काठमाडौं, त्रि.वि.वि., (२०३०,पृ.१७०) अनुसार गोपाल राजा हुकहनक नाउँ गुप्तम ओराइल बाट । यी आधारसे चन्द्रगुप्त, समुद्र गुप्त राजाहुक्र पाल वंशक राजा रलह । हुक्र गैयापालक् गोपाल रलह । ज्ञानमणि नेपाल, नेपाल निरुक्त, काठमाण्डौ ः ने.रा.प्र.(२०३०, पृ.१५ व पा.टि.नं ४०) अनुसार कुछ पुराणम आभीर (गोपाल) हुकन् पशुपालक कैक उल्लेख करल बाट । समुद्र गुप्त आपन अभिलेख प्रयाग (इलाहावाद) प्रशस्तिम अप्न स्वयम्ह गण जातिक आभिर राजा कहल बाट । आभिर सूर्यवंशी पशुपालक हुइट कलसे अहिर चन्द्रवंशी पशुपालक हुइट । चन्द्रगुप्त मौर्यह सेना नायक रहलवर्से चन्द्रगुप्त सेनफे कठ । पावाक शाक्य हुक्र मल्ल युद्ध (कुस्ति) खेल्नावर्से मल्ल कहट ।
हिन्दू धार्मिक ग्रन्थअनुसार ब्रह्माजीके बर्का छावा मरिची हुइल । मरिचिक बर्का छावा कश्यप हुइल ।

कश्यपक जन्नी दक्ष प्रजापतीक छाई अदिती रलहि । अदितीसे इन्द्र व विवस्वान (सूर्य) छावन पैदा हुइल । विवस्वान (सूर्य) से बर्का मनु बैभत्सभता पैदा हुइल । मनु बहुत धर्मात्मा रलह । मनुसे मानव जातिक उत्पत्ति हुइलक हो कना हिन्दू धार्मिक ग्रन्थके मान्यता हो । मनुके नौ भाइ सूर्यवंशी छावन व एक्ठो चन्द्रवंशी छाई इला रलही । मनुक नौ भाइ छावनमसे खाली चारथो छावन् केल राजा बनल रलह । गरुड पुराणअनुसार मनुक सब्से बर्का छावा इक्ष्वाकु अयोध्याक राजा बन्ल । ईक्ष्वाकुक् दुई छावनमसे बर्का विकुक्सी ससदा व छोट्का निमीहुक्र सूर्यवंशी राजक रुपम चिन्ह जैठ । वायु पुराण, विष्णु पुराण व ब्रह्म पुराणअनुसार विकुक्सी ससदा इक्ष्वाकु वंशक अयोध्याक राजा बन्ल ।

छोट्का निमीह वैदेहिफे कहठ । विदेहक राजा बन्ल । रामायणअनुसार निमी पाछक् दोस्रा राजा मिथिजनक राजा हुइल । ब्राह्मणपुराण व विष्णु पुराणअनुसार मिथि जनकक राजधानीक नाउ मिथिला रहल । वहा शासन कर्ना सूर्यवंशी राजा हुकन मिथिला जनक कह लग्ल । गुरु वशिष्ठ हुँक्र अयोध्या व विदेहक पुरोहित रलह । मनु वैभत्सभताके मझला छावा नभनेदिष्ठा वैशाली राजवंशसे प्रख्यात हुइल कलसे आउर छावा सरयाती अनरता सूर्यवंशी राजवंशसे चिन्ह जइठ । आउर पाछक् छावनके बारेम कौनो उल्लेख नै कैगइल हो ।

वेदम शिवह असुरदेवता कह गइल बाट । असुर दिउताह मन्ना, पुज्ना कश्यप गोत्रक अथवा काशी वंशक मनैन वैदिक आर्य हुक्र असुर, दैत्य, दानव कहट । दहित कलक गोपालवंशक हो, दईत कलक दैत्य, दानव, असुर हो ।

मनुक छाई इला चन्द्रवंशी ऐल वंशले प्रख्यात हुईली काकरकि ऊ चन्द्रवंशी रजवसे भोज करल रलही । हिकाहार वंशह वैदिक आर्यफे कठ । जेहिह हम्र सिन्धुघाटी सभ्यता कठी । ऊ सभ्यता सूर्यवंशी राजनक सभ्यतासे चिन्ह जाइठ । मिश्रक बेबिलोन सभ्यताफे सूर्यवंशी राजनक सभ्यतासे चिन्ह जाईठ । हुक्र शिव पुजक रलह । वेदम शिवह असुरदेवता कह गइल बाट । असुर दिउताह मन्ना, पुज्ना कश्यप गोत्रक अथवा काशी वंशक मनैन वैदिक आर्य हुक्र असुर, दैत्य, दानव कहट । दहित कलक गोपालवंशक हो, दईत कलक दैत्य, दानव, असुर हो ।

दाङ्, बैबाङ्क दहित परिवारमसे आजसे चार पुस्ता आघ लक्ष्मी कना एक जान दहित महिला सति गइल रलहि । हुकाहार थरुवक् नाउँ रघुनाथ रलहन । पहिल–पहिलक् राजन् युद्धम लर गइलसे हुकहनक जन्नी राजमहलम चिता बनाक बैठित । थरुवा मुअल समाचार सुन्तिकि हुकहनक जन्नी चिताम कुदक मर जाइट । हुइनात काल गतिसे रजवा मुलसे रजवकसँग रानीहफे जित्तिय चिताम जरादेना परम्परा रह । बैबाङ्क सति जवैया लक्ष्मीक दुई छावन्क नाउँफे बिशम्भरपाल व पृथ्वीपाल रलहन । काकरकि हु‘क्र गोपालवंशके पशुपालक सूर्यवंशी आभिर रलह । पुराणम मिश्र देशक राजा हम्बुरावी (अमरवंशी राजा) व बाणीपाल (संस्कृत साहित्यम अम्बरिष्ट राजा) कहिक उल्लेख कई गइल बाट । चाहे काठमाडौंक पाल हुक्र हुइट अथवा कर्णाली प्रदेशक पाल हुक्र । चाहे कपिलवस्तुक शाक्य, विदेहक जनक पाल हुक्र अथवा बंगालक पाल हुक्र सक्कु एक्क वंशक रलह ।

दइत हु‘क्र कश्यप गोत्र, काशी गोत्रक हुइट । बालकृष्ण पोख्रेल आपन लिखल किताव ‘खस जातिको इतिहासम लिख्ठ, “कश्यपा समूहका मानिसहरुलाई काशी वंशका दैत्यको संज्ञा दिइन्छ । दैत्यहरुको मूल स्थान सिरियाका मितान्नी प्रान्त हो भने दानवहरुको असिरिया हो । तर दुवै समूहलाई महाभारतकालमा असुर भनेर सम्बोधन गर्न थालियो । काशी समूहका मानिसहरुले अभिरा, आभिर पदवी प्राप्त गरेका थिए । काशी समूहका दैत्यहरुमाजस्तै काशी, कश्यप, केशी, केशरी, किशी, गज, गाजी, खस, कच्छपा आदि समावेश छन् ।”

योगी नरहरिनाथ प्राकृत भाषाम लिखल ‘दंगीशरण कथा’ कितावम बनारससे दाङ् आक राज्य कर्लक बनारसक रजवक छावा कहिक उल्लेख करल बाट । चाहे कपिलवस्तुक शाक्यहुक्र ह्वाए अथवा कोलिय हुक्र ह्वाए बनारस रजवक सन्तान दैत्य, दहित रलह ।

पं. टेकनाथ गौतम्“ आपन किताव ‘थारू जातिको इतिहास तथा थारू पुराण’ म दाङ्क दहित हुकन् दैत्यक संज्ञा देहल बाट । गौतम् दहित हुकन अयोध्याक राजा दशरथ व रामक शाखा, वंशज बतैथ । मिश्र देशक ख्याती प्राप्त राजन् हम्बुरावी, बाणीपाल एक्क दइत कूलक बतैथ । योगी नरहरिनाथ प्राकृत भाषाम लिखल ‘दंगीशरण कथा’ कितावम बनारससे दाङ् आक राज्य कर्लक बनारसक रजवक छावा कहिक उल्लेख करल बाट । चाहे कपिलवस्तुक शाक्यहुक्र ह्वाए अथवा कोलिय हुक्र ह्वाए बनारस रजवक सन्तान दैत्य, दहित रलह ।

दहितहुक्र डिहुरार दुईथो नाग दिउतामसे एक्ठो बासुकि नाग व दोस्रा शेषनाग दिउता पुजक हुइट । बाल्मीकी रामायणमफे शेषनाग वंश राजा हुकनक वर्णन कैगइल बाट । बौद्ध ग्रन्थअनुसार बिम्बिसार ई.पू.५४६ म यह नाग वंशक राजा रलह । कश्यप गोत्रक् पाल हुक्र‘ नाग पुजक रलह । दीघनिकाय, महापरिनिव्वान सुत्तम पटक–पटक राजा बिम्बिसारक बर्का छावा अजात शत्रुह “वैदेहीपुत्र मगधराज अजात शत्रु” कहिक उल्लेख करलवर्से विदेहक राजा जनक हुक्र मगधक राजवंश एक्क कुलक रलह । मगधम शासन कर्ना अनेक अनार्य मूलक प्रतापी राजनक वर्णन भारतक प्राचीन इतिहासम कैगइल बाट । जेहिमसे सर्वश्रेष्ठ राजा जरासन्ध रलह । दहितहुक्र भेरवा अथवा भैरवह प्रतिकक् रुपमा सूर्य चिन्ह अंकित माटीक् घोरुवाह पुज्ठ । शाक्य हुकहनक राजधानी कपिलवस्तुक् तिलौराकोटक उत्खनन पागइल माटीक घोरुवा व दहित हुक्र पुज्ती ऐलक माटीक घोरुवाम कौनो फरक नै हो । दुरुस्त बाट । दहित हुक्र मरुवाम सब्से उत्तर छोटीमोटी माटीक घोरुवाम सूर्य चिन्ह छाप लागल रहठ । जेहिह दहितहुक्र सुच्चा कठ । सुच्चा कलक देवी लक्ष्मी हुइटी । जीता, दारु नै खइठी खाली जल . गैयक दूधकधार व रोटी, ढिक्रिकेल खइठी । मनु वैभत्सभताक बर्का छावा इक्ष्वाकुक् दुईथो छावन्मसे बर्का छावा अयोध्याक राजा विकुक्सी ससदा आपन कुलदेवी लक्ष्मीह पुजट कलसे हुकाहार भैया निमीक सन्तान हुक्र आपन कुलदेवीक रुपम चण्डीह पुजठ ।

शाक्य हुकहनक राजधानी कपिलवस्तुक् तिलौराकोटक उत्खनन पागइल माटीक घोरुवा व दहित हुक्र पुज्ती ऐलक माटीक घोरुवाम कौनो फरक नै हो ।

बर्कक कुलगुरु अयोध्यक वशिष्ठ हुइट कलसेफ विदेह जनक हुकहनक कुलगुरु गौतम् हुईट व गोत्र बशिष्ठ हुइन । लेकिन विकुक्सी व दहित हुकहनक गोत्र कश्यप, कुलगरु –बशिष्ठ, परवर–कश्यप, वत्सरा, सिनेति, बेद –यजुरवेद, कुलदेवि –लक्ष्मी, उपनाम –नवलकर, लदिया–सरयू हो । बुद्ध ग्रन्थ महापरिनिव्वाण सूत्तसे ज्ञात हुइठकि पावाक मल्ल, रामग्रामक कोलिय, कपिलवस्तुक शाक्य, अलकप्पाक बुली, कसया जिला गोरखपुर (हालक जिल्ला कुशीनगर उ.प्र), अनुपिया, पिप्लीवनके मौर्य, वैशालीक लिच्छिवी, मिथिलाक विदेह, अयोध्या, काशी, एकचक्खु, बजिरा, मथुरा, अरि, इन्द्रप्रस्थ, कौशम्बी, कर्णगोच्छ, रोजनगर, चम्पा, राजगृह, तक्षशिला, कुशीनारा, तामलित्थिय, पाण्डव राज्य हस्तिनापुर, कुण्डग्रामक ज्ञात्री, केशपुत्रक कलाम, मगधक बिम्बिसार व श्रीलंका द्विपक सिंहाल आदि सक्कु राजा हुक्र एक्क इक्ष्वाकु (ओक्काक) सूर्यवंशक राजन् रलह । उपरोक्त सक्कु राजन् हिन्दू धर्म व वर्ण व्यवस्था नै मानट । क्रमश…

(लेखक महेश चौधरी थारु इतिहास, संस्कार संस्कृति ओ भाषाक अनुसन्धाता हुइत)

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