थारुके फुटले करम

कविता

महेश्वर चौधरी

राणाा शासन, पंचायती शासन, पर्जातन्त्र अ‍ौर गणतन्त्र
कोनो व्यवस्था एलै तैयो ने थारूके सपरलै अर्थतन्त्र
सब व्यवस्थामे जीन्दावाद थारूके धरम
अखनतक सबके पीछलगुवा थारूके फुटले करम ।

वजीया पहरीया मीलके कैलके खाली थारूके भखारी
थारू समाजके वचावुची अखनो खाइछै अदहे थारी
खुन पसीना एक कैरके थारू करै छै काम
दवाइ वीना सींस ठारहे रहै छै थारू के धान ।

खेतपात वेचवाइच के परहै छै थारू
सरकारो ने काम दैछै त पीयै छै दारू
अगा बरहु नेता बनु नै करू सरम
शोषक सामन्तके अन्त्य करनाइ सम्झु आपन धरम ।

धनीकके वेटा लुइटलाइटके वनै छै मालीक
गरीबके वेटा सहीद है छै तैयो ने वनै छै सालीक
सब थारू मीलके जोर से कर वीकास अपना
पढ लीख काम कर तव पुरा हेतौ थारू के सपना ।

जय गरीब कमासुत थारू सब हमर कोटी कोटी पर्नाम
अखन करैचीयौ येहया सलाम ।

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