हजारौं रहर

गजल

सागर कुस्मी

हजारौं रहर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे ।
सपनक् सहर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे ।

मोर मुटुमे घाउ खोज्ठो काहे टुँ,
मै मुटुमे असर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे ।

यहाँ बीर सहिडन्हे समझके आझ,
लम्मा सफर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे ।

भ्रस्टाचारिन्हे सखाप पारक् लाग,
हाँठम् जहर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे ।

यदि भेटैम कलेसे बुद्धहे जरुर कहम्,
शान्तिक् खबर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे ।

लेखक हरचाली साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिकाके प्रकाशक ओ प्रधान सम्पादक हुइँट ।

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